महिला आरक्षण बिल संसद में चर्चा और विवाद

महिला आरक्षण बिल संसद में चर्चा और विवाद, राहुल गांधी ने कहा मैं आपके साथ हूं इसमें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 19 सितंबर, 2023 को लोकसभा में पेश किए गए महिला आरक्षण बिल, 2023 पर संसद में व्यापक चर्चा और विवाद हुआ। बिल में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का प्रावधान है। बिल में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटों को इन श्रेणियों की महिलाओं के लिए आरक्षित करने का भी प्रस्ताव है।

विपक्षी दलों का समर्थन

विपक्षी दलों ने आम तौर पर बिल का समर्थन किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने बिल का स्वागत करते हुए कहा कि वह इसमें “आपके साथ हैं”। उन्होंने कहा कि बिल एक “महत्वपूर्ण कदम” है जो भारत को एक अधिक समावेशी और प्रतिनिधि लोकतंत्र बनाने में मदद करेगा।

विपक्षी दलों की आलोचना

हालांकि, कुछ विपक्षी दलों ने बिल में कुछ कमियों पर चिंता व्यक्त की। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने कहा कि बिल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में महिलाओं के लिए आरक्षण को कम करना चाहिए।

सरकार का बचाव

सरकार ने विपक्षी दलों की आलोचना का बचाव किया। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि बिल एक “मजबूत और समावेशी” बिल है जो महिलाओं के लिए सशक्तिकरण और प्रतिनिधित्व में सुधार करेगा।

बिल के आगे के कदम

बिल को लोकसभा में पारित होने के बाद अब राज्यसभा में पेश किया जाएगा। राज्यसभा में पारित होने के बाद, इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। एक बार जब राष्ट्रपति बिल को मंजूरी दे देंगे, तो इसे संविधान में संशोधन के रूप में शामिल किया जाएगा।

बिल के संभावित प्रभाव

यदि बिल पारित हो जाता है, तो यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक कदम होगा। यह विधायिका में महिलाओं की भागीदारी को काफी बढ़ा देगा। इससे महिलाओं के लिए सशक्तिकरण और प्रतिनिधित्व में सुधार होगा।

बिल के संभावित मुद्दे

हालांकि, बिल कुछ मुद्दों को भी उठाता है। एक मुद्दा यह है कि क्या आरक्षण के बिना महिलाएं विधायिका में अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व कर पाएंगी। एक अन्य मुद्दा यह है कि क्या आरक्षण महिलाओं की योग्यता के आधार पर विधायिका में महिलाओं की भागीदारी को कम कर देगा।

इन मुद्दों पर चर्चा और बहस जारी रहेगी। हालांकि, बिल एक महत्वपूर्ण कदम है जो भारत को एक अधिक समावेशी और प्रतिनिधि लोकतंत्र बनाने में मदद कर सकता है।

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