उच्च न्यायलय ने नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका की ख़ारिज

उच्च न्यायलय ने राज्यों में उपमुख्यमंत्री को नियुक्त करने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को रद कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि डिप्टी सीएम का पदनाम संविधान के किसी भी प्रावधान का उलंघन नहीं कर सकता।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सोमवार को कहा कि उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति , कई राज्यों में पार्टी या सत्ता में पार्टियों का गठबंधन , में वरिष्ठ नेताओ को थोड़ा ज्यादा महत्व देने की प्रक्रिया का पालन किया जाता है। CJI डीवाई चंद्रचूड़, मनोक मिश्रा और जस्टिस पारदीवाला की पीठ का यह कहना है कि , उपमुख्यमंत्री संविधान के तहत , केवल सीएम की अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद के सदस्य ही बाकि हैं। बेंच ने कहा कि उपमुख्यमंत्री को अप्पोइंट करने के लिए नियुक्ति संविधान के किसी भी प्रावधान का उलंघन नहीं करती। जिस को आधार मानकर याचिका को रद किया जा सकता है। इसके वावजूद भी कई राज्यों ने उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति की है।

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सूत्रों के अनुसार देश में इस समय 14 राज्यों में छबीस डिप्टी सीएम जिनका राज्य के नागरिको से कोई लेनादेना नहीं है। और ये बात वकील मोहनलाल शर्मा ने जनहित याचिका में कही। इसके अलावा याचिका में कहा गया कि डिप्टी सीएम की नियुक्ति से जनता में बड़े लेवल पर भ्रम ही पैदा होता है। इस दौरान पोलिटिकल पार्टियां फर्जी पोर्टफोलियो बना अवैध उदाहरण बताते हैं। इसका मुख्य कारन है कि उपमुख़्यमंत्रियो को लेकर कोई भी स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते

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