जैन रामायण के अनुसार रावण का वध लक्ष्मण ने किया

आजकल हर तरफ अयोध्या के राममंदिर में रामलला के मूर्ति प्रतिष्ठान की बात  हो रही है।  साथ – साथ राम भगवान पर लिखे गए ग्रंथो को लेकर भी खूब चर्चा हो रही है।  जैन धर्म की एक किताब में लिखा गया है की रावण का वध भगवान राम ने नहीं बल्कि लक्ष्मण ने किया था।  जैन रामायण दार्शनिक स्तर पर अन्य रामायणो से बहुत भिन्न है। 

इस रामायण की शुरुआत बाल्मीकि रामायण से अलग है जिसमे विद्याधर , वानर और असुर क्षेत्र की व्यायख्या है।  इस रामायण में राक्षस , असुर की छवि को तोडा जाता है । इसमें विमलसूरि ने स्पष्ट किया है की राक्षस बुरे नहीं होते। यह संस्कृत रूप से उन्नत समाज है। रावण मेघवाहन कुल का है जो की एक सम्मानित्त जैन है।  उन्होंने अपने जीवनकाल में कई सारे जैन मंदिरो का निर्माण करवाया था।  आपको बता दें इस रामायण के अनुसार रावण सुन्दर और गुणवान था, और जैन मंदिरो का रक्षक था । केवल सीता ही उसकी कमजोरी थी जैसे की वाल्मीकि रामायण में वर्णन है।  रावण का प्रतीकात्मक रूप दस मुख वाला है।  रावण की माँ द्वारा दिए गए दस बहुमुल्यो रत्नो के हार पथरो पर जो प्रतिबिंब बनता था जिससे उसे अपने दस मुखों को आभास होता था।  इस रामायण में जो वानरों का समूह है वो जैन के अनुसार जुझारू आदिवासी समाज है। 

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इस रामायण में कहीं पर भी राम द्वारा  सोने के मृग को मरने का वर्णन नहीं किया गया है।  दूसरी ओर रावण ने लक्ष्मण का रूप धारण कर सीता का अपहरण किया था । पूरी कहाँ िमें बार बार राम और रावण द्वारा जैन धर्म का सम्मान देखने को मिलता है।  उन्होंने किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुँचाया है।  इसलिए ही राम के साथ अंतिम युद्ध में रावण के खिलाफ हथियार नहीं उठाये थे।  और रावण का वध लक्ष्मण के द्वारा हुआ जिसके कारण रावण और लक्ष्मण को नर्क की प्राप्ति हुई। श्री राम जैन धर्म में 63 वां शलाका पुरुषो में से एक हैं।  जैन में राम कोअथवान बलभद्र माना गया है। 

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