CJI चंद्रचूड़ ने कहा हमारे देश के मंदिरो के ध्वज देश को आपस में जोड़ते हैं
अयोध्या के निर्माणाधीन राम मंदिर का पहला चरण पूरा होने वाला है। आपको बता दें कि 22 जनवरी को रामलला कि मूर्ति प्रतिष्ठा है। इसी बीच देश में धर्म कि चर्चा हो रही है। हर तरफ धर्म कि बातें हो रही हैं चाहे , वो नेता हों , अभिनेता हों। हर जगह पर यही चर्चा का विषय बना हुआ है फिर चाहे वो टीवी।, सोशल मीडिया पर भी भारत के बहुसंख्यक आबादी का हिन्दू धर्म छाया हुआ है। हल ही में बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो चंद्र्शेखर के बयान पर बबाल मच गया है। इन्होने कहा इस देश कि सबसे पहली शिक्षा मंत्री साबित्री फूले ने मंदिरो को मानसिक गुलामी और विद्यालयों को प्रकाश का रास्ता बताया जो कि बिलकुल सही कहा है। हालाँकि वह खुद भी खुद भी मंदिर जाते रहते है और सोशल मीडिया पर भी इसकी बात करते रहते हैं और दुनिया को भी बताते रहते हैं , उनकी इस बात पर कई सरे नेताओ ने विरोध किया। इससे पहले जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ गुजरात यात्रा के दौरान मंदिरो कि यात्रा पर गए थे तो इस बात को लेकर भी बहस चालू हो गयी। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने जस्टिस की गुजरात यात्रा पर आलोचना की।
6 और 7 जनवरी को चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ दो दिन के लिए गुजरात दौरे पर गए थे जहाँ पर उन्हें राजकोट के जामनगर रोड पर 110 करोड़ कि लागत से बने न्यायलय भवन का उद्घाटन करना था। इसके साथ साथ वह परिवार सहित द्वारिकाधीश और सोमनाथ मंदिर में भी गए। चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों को लेकर कहा कि इसके लिए हमे महात्मा गाँधी के जीवन से प्रेरणा लेकर अलग अलग राज्यों का दौरा करना होगा जिसमे से ये गुजरात का दौरा भी इसी प्रयोग का हिस्सा था। जस्टिस ने बताया कि मेने पिछले साल भी अलग अलग राज्यों का दौरा करने कि कोशिश की ताकि मैं उच्च नयालयो के न्यायधीश और न्यायपालिका के अधिकारीयों से मिल पाऊं और उनके सामने आने वाली चुनौतियों को सुन कर उनका समाधान कर सकूं। चंद्रचूड़ ने धब्जो से मिलने वाली प्रेरणा के बारे में भी कहा , उन्होंने कहा कि में द्वारिकाधीश और सोमनाथ मंदिर पर लगे हुए ध्वजो से भी प्रेरित हुआ और इसी प्रकार का ध्वज मेने जगन्नाथपुरी में भी देखा , साथ में ये भी कहा कि हमारे देश कि सार्वभौमिकता हमारे देश को जोड़ कर रखती है। ये हम सबको जोड़कर रखती है , वह एकीकृत शक्ति मानवता है , जो कानून के शासन और भारत संविधान द्वारा शासित होती है।
भारतीय इतिहासकार रामचंद्र गुहा को महात्मा गाँधी पर किताबे लिखने के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है , महात्म्य ागांधी के जीवन को जानने के लिए उन्होंने कई वर्ष अपनी जिंदगी के बिता दिए। उन्होंने द स्क्रॉल के लिए लिखे गए अपने कॉलम गुहा ने लिखा है कि गाँधी जीखुद कभी भी मंदिर नहीं गए , आगे उन्होंने लिखा है कि गाँधी जी खुले मैदान में अंतर-धार्मिक बैठक आयोजित करते हैं , जिसमे सभी धर्मग्रंथो के छंद पढ़े जाते हैं। यह उनका सभी धर्मो के प्रति एक सामान प्रेम दर्शना था।
Read More: Click Here
सीजेआई द्वारा मंदिरो के ध्वज को सभी जोड़ने वाला बताये जाने पर गुहा ने लिखा है कि “जाहिर है कि ये सच नहीं है ” । पारम्परिक रूप से हिन्दू मंदिरो के ऊपर लहराने वाली ध्वजा हम सभी को एकसाथ मानवता के रूप में बांधने का काम नहीं किया है। हिन्दू धर्मिक परम्परा महिलाओं के साथ भेदभाव करती है जो मासिक धर्म के दौरान उनको मंदिर में जाने से इंकार किया जाता है।
क्या कहता हैं जस्टिस कौल
संजय किशन कौल से सवाल किया था कि वह भगवान में आस्था रखते है? और अगर हाँ तो इसका काम पर कितना प्रभाव पड़ता है ? 25 दिसंबर को सेवानिवृत हुए जस्टिस कौल ने कहा ;मैं धर्म को ऐसी चीज समझता हूं, जो मेरे और मेरे भगवान के बीच है। ये किसी और की नहीं है। मैं शुरू में तो मंदिर वगैरह भी बहुत कम जाता था। मेरा पूजा करने का अपना तरीका है। मेरे दादा बहुत आस्थावान व्यक्ति थे, उन्होंने मुझे सिखाया था। मैं पांच मिनट या 10 मिनट, जिस वक्त जो मौका मिल जाए, अपनी तरह से पूजा कर लेता हूं।