कांग्रेस ने अयोध्या आमंत्रण लेने से मना कर दिया

22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की मूर्ति प्रतिष्ठान होने जा रहा है जिसमे कांग्रेस के नेता शामिल नहीं होंगे , देश की सबसे पुरानी पार्टी ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के भव्य समारोह के आमंत्रण को अस्वीकार दिया है। कांग्रेस ने इसे भाजपा का इवेंट बताया है। अब सभी के मन में एक सवाल आ रहा है की क्या कांग्रेस ने सियासी जोखिम लिया है या ये सियासी ब्लंडर है ?

क्या है कांग्रेस की सोच?

अब इस सवाल एक उत्तर तो कांग्रेस ही दे सकती है। आपो बता दें कि जब राम मंदिर के उध्गाटन का न्योता कांग्रेस को मिला था तो , तो उस समय नियंत्रण को लेकर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी थी। न ही तो उन्होंने जल्दी हामी भरी जाने के लिए , अब तक उनकी तरफ से कोई उत्सुकता भरा जबाब नहीं मिला जिससे लग रहा है की देश की सबसे पुरानी पार्टी मुश्किल में है , और उनकी मुश्किल ये है कि अगर वो राम मंदिर में गए तो मोदी जी को लाइमलाइट मिल जाएगी । आपको बता दें की देश का आधे से ज्यादा मुसलमान कांग्रेस का साथ देता है , जिसका डर पार्टी को लगातार सता रहा है।कांग्रेस को ये याद रखना चाहिए कि भाजपा के निमंत्रण को स्वीकारना ही कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा है। और अगर कांग्रेस राममंदिर में नहीं आती है तो पार्टी को हिन्दू विरोधी बताने में जरा देर नहीं लगेगी । और ऐसे में लग रहा है कि कांग्रेस बैठे बिठाये BJP को एक मुद्दा दे रही है।
असल में आपको बता दें की केरल में कांग्रेस का गठबंधन इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ चल रहा है जहाँ पर IUML राम मंदिर कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस को एडवाइस दी कि भाजपा के जाल में न ही फसे तो बेहतर होगा और इतना तक बोला गया की हर धर्मनिरपेक्ष दल को ऐसा ही करना चाहिए। इस वक़्त कांग्रेस का संगठन काफी मजबूत चल रहा है । और इसके साथ कांग्रेस के लिए मुस्लिम्स का वोटबैंक भी काफी अच्छा है। इसलिए कहा जा रहा है कांग्रेस ने अपना मूड बदल लिया है। दूसरी तरफ ये बातें भी आ रही हैं की ये उत्तर बनाम दक्षिण का मुद्दा बन गया है। एक तरफ यहाँ पर उत्तर के सभी नेता राम मंदिर का समर्थन कर रहे हैं वहीँ दूसरी और दक्षिण के नेता इस से बच रहे हैं , ये बात ही गौर फरमाने है की कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे खुद कर्नाटक से है। आपको बता दें कि कांग्रेस को सबसे ज्यादा वोट मुस्लिम करेंगे देश के पंद्रह फीसदी मुसलमान उनके साथ हैं। अगर हम बात करें 2019 के लोकसभा के चुनाव की तो भारत के उत्तर भारत के कई राज्यों से 50 फीसदी वोट मुस्लिम्स के आये थे।

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वैसे ही हाल ही में मध्य प्रदेश के चुनाव मिली जबरदस्त शिख्स्त के बाद कांग्रेस को पता चल गया है कि वो सॉफ्ट हिंदुत्व पर ज्यादा ऐसे से बेटिंग नहीं कर सकते। जैसे की आपको हमने बताया की कांग्रेस के काफी नेता नहीं जाने वाले हैं तो INDIA गठबंधन के कई नेताओ ने इससे दूरी बना ली है , कुछ नेताओ ने तो अपने बयान बदल दिया है , कहा की अखिलेश यादव तो राम मंदिर जाने के लिए तैयार थे पर उनको निमंत्रण नहीं आया। परतु जब निमंत्रण मिला तो उन्होंने आने से मना कर दिया कहा कि अनजान लोगों से निमंत्रण में कैसे स्वीकार कर सकता हूँ। इन बातों से तो लगता है की अखिलेश यादव को राजनीती से बढ़कर कुछ नहीं है।

वैसे तो ममता बनर्जी ने भी राम मंदिर में जाने से मना कर दिया। उसने भी हिन्दू मुस्लिम एकता को लेकर अपने तर्क दिए हैं। परन्तु देश के मुसलमानो को राम मंदिर से कोई खासा फर्क नहीं पड़ता।

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