अशोक सिंघल के दादा थे अयोध्या के पहले कारसेवक

विश्व हिन्दू परिषद् के नेता अशोक सिंघल को अपने दादा को राम आंदोलन का पहला कारसेवक बताया। इनके दादा गुरु दत्त सिंह 1949 में बाबरी मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्ति रखे जाने के दौरान फैजाबाद सिटी मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट थे।

रिपोर्ट के अनुसार रामजन्मभूमि में अशोक सिंघल के दादा की भूमिका के बारे में पूर्व केंद्रीय संस्कृत सचिव और नेहरू मेमोरियल संग्राहलय के पूर्व निदेशक राघवेंद्र सिंह से बार्तालाप किया।

गुरु दत्त इसलिए पहले कारसेवक हैं क्यूंकि उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और मुख्तमंत्री गोविन्द भलव पंत के आदेश के बाबजूद भी बाबरी में रखी हुई मूर्ति को नहीं हटाया था। उस समय प्रधानमंत्री नेहरू ने गोविन्द को यह सुनिश्चित करने को कहा था कि मस्जिद से मूर्ति को हटा दिया जाये। परन्तु इन सब पर भी गुरु दत्त अडिग रहे और मूर्ति को हटाने नहीं दिया। और उन्होंने सीएम को फ़ैजाबाद – अयोध्या घुसने नहीं दिया। राघवेंद्र यद् करते हैं और कहते हैं कि 22-23 को रामलला के मूर्ति बाबरी में प्रकट हुई थी और फिर यह खबर स्थानीय स्तर पर फ़ैल गयी थी। और उस समय के रेडियो पर ये खबर चलाई गयी थी कि बंटबारे के समय जो जगह खली बच गयी हैं , हिन्दू उन पर कब्जा कर रहे हैं। दिल्ली कि केंद्र सर्कार तुरंत दबाब में आ गयी। और उन्होंने सोचा कि अगर इस स्थिति को बने रहने दिया तो मुस्लिम समुदाय खुद को कांग्रेस पार्टी से दूर कर लेगा। इस पक्ष को देखने के लिए मुख्यमंत्री पंत को आदेश दिया गया। उन्हें जिला प्रशाशन से बातचीत की और प्रशासन ने रिपोर्ट दी जिसमे लोगों की मानसिक स्थिति को देखते हुए कहा कि अगर मूर्ति हटा दी गयी तो समस्या बहुत हो जाएगी।

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नेहरू ने इस बात पर पंत को अयोध्या भेजा वहां गुरुदत्त ने फ़ैजाबाद के बॉर्डर पर सीएम से बात की तो उन्होंने सीएम को सलाह दी कि वह इस तनाव भरे माहौल में न जाएँ क्योंकि लोगों का मानना है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों की मंशा रामलला की मूर्ति को हटाना है। राघवेंद्र बताते हैं कि पंत ने बहुत गुस्से में गुरुदत्त को कहा कि इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। इसके बाद गुदत्त बापिस ए और अपने सगे सम्भंधियो से बातचीत की और अपना इस्तीफ़ा दे दिया। परन्तु इससे पहले उन्होंने दो आदेश पारित किया जिसमे पहला था – राम चबूतरे के पास होने वाले प्रार्थनाएं जारी रहे -दूसरी – धारा -144 लागू की जाये ताकि वहां पर ज्यादा लोग जा कर समस्याएं पैदा न करें।

बातचीत पर राघवेंद्र बताते हैं कि गुरुदत्त को आधी रत को उनका आवास खली करने को कहा गया और उनका सारा सामान घर से निकल फेंका। उससे अगले दिन वह अपने परिचित भगवती बाबू के घर तीसरी खाली मंजिल पर रहने चले गए थे। बाद में उन्होंने फ़ैजाबाद के बस स्टैंड पर राम भवन के नाम से अपना घर बनबाया। इतना ही नहीं सरकार ने उनके पेंशन के समय भी दिक्ततें पैदा की , परन्तु लोग उनको प्रेम करते थे जिसके वजह से वह नगरपालिका के अध्यक्ष बन गए।

1949 से पहले उठी थी राम मंदिर निर्माण की मांग

राघवेंद्र का कहना है 22-23 , 1949 की रात को ही मंदिर निर्माण की बात हो रही थी जब बाबरी मंदिर में मूर्ति भी नहीं रखी गयी थी। कहा गया था कि राम चूबतरे के पास मंदिर का निर्माण किया जाना चाहिए। अशोल सिंघल के हवाले से 1949 में यूपी सरकार को याचिका दी गयी थी कि यहाँ राम मंदिर बनना चाहिए। सरकार ने इसपर रिपोर्ट तैयार करने को बोला , और फ़ैजाबाद जिला प्रशासन को देने को कहा और मेरे दादा को ये रिपोर्ट डीएम को देने को कहा। उन्होंने वैसा ही किया और कहा कि जमीन सरकार की है और लोगों की आस्था रामलला किमें है और वे भव्य मंदिर चाहते हैं।

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