यूपी मदरसे के कानून

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी मदरसे के कानून को नहीं किया कबूल

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के मदरसा कानून , २००४ को अंसवैधानिक बताने वाले हाई कोर्ट के निर्णय पर रोकथाम लगा दी हाई । चीफ जस्टिस डीवाई की अध्यक्षता वाली बेंच ने हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को गलत बताया हाई और ये भी कहा की हाई कोर्ट द्वारा मदरसा कानून के प्रावधानों को समझने की भूल कर रहे हैं । और ये कहते हुए कोर्ट ने सभी पक्षकारो यानी मदरसा बोर्ड , यूपी सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस भेज दिया हाई । 30 जून 2024 तक इस नोटिस का जवाब माँगा हाई। और अगली सुनवाई अब जुलाई के दूसरे हफ्ते में जाकर होगी। अभी 22 मार्च को इलाहबाद कोर्ट ने “धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन” बताते हुए मदरसा कानून को असंवैधानिक घोषित किया था।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस अंतरिम रोकथाम लगाने के बाद मदरसों में 2004 के मदरसा बोर्ड कानून के अंतर्गत ही पढ़ाई शुरू की जाएगी। इससे यूपी के लगभग 16,500 को इससे राहत मिली हाई। न्यायधीश चंदरचूड़ और जस्टिस पड्रीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा की इलाहबाद हाई कोर्ट का इस तरह से कहना गलत होगा कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का अतिक्रमण हो रहा यही । बेंच का आदेश हाई कि इस तरह के नियम का पालन करना चाहिए ।

सुप्रीम कोर्ट में यूपी मदरसा बोर्ड की ओर से सीनियर वकील अभिषेक मन्नू सिंघवी अदालत में आये और कहा कि अदालत का कोई हक़ नहीं हाई कि इस कानून को ख़ारिज करे और उन्होंने बताया कि

“हाई कोर्ट का कहना है कि अगर आप धार्मिक विषय पढ़ाते हैं तो यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि धार्मिक शिक्षा का अर्थ धार्मिक निर्देश नहीं है। आज कई गुरुकुल भी प्रसिद्ध हैं क्योंकि वे अच्छा काम कर रहे हैं , मेरे पिता की भी एक डिग्री वहीं से है। तो क्या हमें उन्हें बंद कर देना चाहिए और कहना चाहिए कि यह हिंदू धार्मिक शिक्षा है? क्या 100 साल पुरानी व्यवस्था को खत्म करने का ये आधार हो सकता है?”

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सिंघवी का कहना है के केवल कोई भी हिन्दू धर्म या इस्लाम को मदरसों में पढ़ाता हाई तो इसका मतलब यह नहीं हाई कि वह धर्म की ही शिक्षा दे रहा हाई। तो फिर इस मसले पर अरुणा राय के निर्णय पर ध्यान देना चाहिए। और धर्मनिरपेक्ष हो कर सभी धर्मो का सम्मान करना चाहिए ।

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