अजन्मे बच्चे का ख्याल रखेगी सरकार सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात की अर्जी की ख़ारिज

सुप्रीम कोर्ट ने बुधबार को कहा कि अजन्मे बच्चे और माँ के हितो का ख्याल रखना भी अदालतों की जिम्मेदारी है। इसके साथ ही उच्च न्यायलय अदालत ने छबीस वर्षीय एक विधवा कि याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसने 32 हफ्तों के गर्भा को खत्म करने की मांग की। पीड़ित महिला , जो मानसिक आघात और अवसाद के कारण गर्भावस्था को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी । उच्च न्यायलय ने याचिका को ख़ारिज कर दिया और हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

हाईकोर्ट ने इस मामले में पहले एम्स के डॉक्टर्स का एक मेडिकल बोर्ड को गठित कर जाँच करवाई गयी। जिसमे यह पाया गया कि अजन्मा बच्चा सामान्य है। चिकित्स्कों के परामर्श से हाईकोर्ट ने महिला की याचिका ख़ारिज कर दी, इसके बाद महिला ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। न्यायधीश एम् बेला ने कहा कि बच्चा बिलकुल सही है , बच्चे का शरीर बिलकुल समान्य है इसलिए हम इस बात पर विचार नहीं कर सकते। इस पर जिस महिला ने शिकायत की थी उसके वकील ने कहा कि हमे माँ के बारे में सोचना चाहिए न कि अजन्मे बच्चे के बारे में। ये इस गर्भवस्था के साथ नहीं जीना चाहती जिसके वजह इसके लिए आगे घातक हो सकती है। याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों और दूसरे खंडपीठ के वकीलों ने कहा कि हमे सिर्फ माँ नहीं बच्चे का भी ख्याल है। ये कहते हुए उन्होंने याचिका ख़ारिज कर दी।

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खंडपीठ ने पाया कि हाईकोर्ट पहले ही केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दे चुकी है कि कि अगर महिला इस बच्चे का जन्म सरकारी अस्पताल में करवाती है तो सरकार अस्पताल का सारा खर्च उठाएगी इसके अलावा बच्चे को जन्म के बाद गॉड देना चाहती हो तो भी सरकार इसमें मदद करेगी। सरकार ने तो यह भी कह दिया कि हमारी तरफ से बच्चे को गोद लेने का जिम्मा रहा बीएस अगले 2 हफ्ते की बात है , फिर भी हम जल्दबाजी करने को तैयार नहीं हैं इससे बच्चे की माँ को जान का खतरा भी हो सकता है। इन सभी पहलुओं पर सरकार ने विचार किया और है कोर्ट ने भी अपने बिंदु रखे जिससे सरकार ने याचिका ख़ारिज कर दी। आपको बता दें दो बार इस केस ने अहिसौर्ट का ध्यान अपनी और आकर्षित किया। पहली बार चार जनवरी को यह केस सामने आया था जब HC ने एम्स के मनोचिकत्स्क विभाग से परीक्षण के बाद महिला की अर्जी पर गर्भपात की आज्ञा दे दी थी ,जिसमे ये पाया गया था कि महिला आत्महत्या का विचार कर रही है , और छह जनवरी को चिठ्ठी में यह पता चला कि गर्भपात करवाने से बचा जीवित पैदा होगा इस तरह के प्रसव से शिशु के मानसिक और शारीरिक विकलांग होने की संभावना है। उसके बाद डॉक्टर्स को बुला के बंद कमरे में कार्रवाई हुई और 4 जनवरी को फैसला वापिस ले लिया गया और कहा कि भ्रूण के शरीर में कोई प्रॉब्लम नहीं है इसलिए भ्रूण हत्या अनैतिक है , जिससे माँ की जान को भी खतरा हो सकता है

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