मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के याचिका पर जजों में हुआ मतभेद हो गया।

स्किल डेवलपमेंट घोटाले के मामले में आरोपी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के याचिका पर जजों में मतभेद हो गया। इसके बाद मामले को CJI के पास भेज दिया गया है। 371 करोड़ रूपए के घोटाले के मामले में नायडू ने एफआईआर को रद्द करने की मांग की। इस मामले में चंद्रबाबू नायडू 53 दिन की जेल भी काट चुकें हैं। हालाँकि इस समय पर वह जमानत पर बाहर हैं। याचिका पर सुनवाई कर रहे जस्टिस एम् त्रिवेदी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा पीसी सेक्शन के 17 एक्ट के अनुसार दोनों के मत अलग अलग हैं। CJI ही आगे की सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन करेंगे।

भ्र्ष्टाचार अधिनियम की धारा 17 ए में एक प्रावधान है कि किसी भी लोकसेवक की जाँच से पहले उस अधिकारी की आज्ञा लेना अनिवार्य है। वहीँ दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट का कहना है की धारा ए को छतरी नहीं है की अपराधी उसके नीचे छिप जायें। इसका लक्ष्य उन अधिकारियो के प्रति न्याय दिलाना है जो अपने हक़ में बात करने से डरते हैं। जस्टिस बोस का कहना है कि राज्य की पुलिस सेक्शन 17 ए के तहत मंजूरी नहीं ले पायी है इसलिए एफआईआर दर्ज करना गलत होगा। और कहा कि अब राज्य सरकार से इसकी आज्ञा ली जा सकती है।

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तो जस्टिस त्रिवेदी का कहना है कि 17 ए को साल 2018 में लाया गया है। इसलिए इसे इस मामले में लागू नहीं हो सकता है। और नायडू पर यह आरोप साल 2016 में लगाया गया था जब वह राज्य के मुख्यमंत्री थे। धारा 17 ए पर मतभेद चलते ही जस्टिस बोस ने मामले को CJI के पास भेज दिया गया था। इसके साथ साथ नायडू पर फाइबर नेट के घोटाले का मामला भी दर्ज है। इस मामले में गिरफ्तारी के बाद 10 सितम्बर को नायडू ने कोर्ट की तरफ रुख किया। उन्होंने कहा की अंदर प्रदेश की मौजूदा सरकार ने राजनितिक बदले को लेकर केस उनपर दर्ज करवाए।

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