चौधरी चरण सिंह को मिलेगा भारत रत्न

पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह के लिए हाल ही भारत रत्न का एलान किया गया है। चरण सिंह को भारत के बड़े किसान नेताओ में से एक हैं। आपको बता दें के वे भारत के पांचवे प्रधानमंत्री रह चुके हैं वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और एक बार 117 दिनों के लिए भारत के पीएम रह चुके हैं। पिछले कई सालों से राष्ट्रिय लोकदल के तरफ से ऐसी मांग उठाई जा रही है। और इस सब के बीच RLD और भाजपा के बीच में गठबंधन की बातें भी सामने आ रही हैं।

आपको बता दें कि पीएम ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न ने नवाजने का एलान किया है तो उन्होने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर लिखा है।
“उन्होंने किसानो के अधिकार और उनके कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया “

इसके बाद इस पोस्ट को दोबारा पोस्ट करते हुए राष्ट्रीय लोक दाल के नेता जयंत चौधरी ने कहा “दिल जीत लिया “
इससे पहले दिसंबर 1 , 2021 को लालनटोप पर चौधरी चरण सिंह के जीवन पर एक कॉपी छपी थी। जिसमे उनके जीवन और राजनितिक यात्रा के बारे में बड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दी गयी ।


चलिए हम आपको बता दें कि कौन है चौधरी चरण सिंह :

बात है अगस्त माह सन 1942 की जिस समय महात्मा गाँधी की अगुवाई में अंग्रेजो के खिलाफ अंतिम और निर्णायक आंदोलन चल रहा था। उस समय एक नौजवान नेता भूमीगत होकर मेरठ और उसके आस पास के इलाको में छुपकर क्रन्तिकारी संगठनों का संचालन कर रहा था । ब्रिटानिया हुकूमत के खिलाफत के चलते मेरठ के प्रशासन ने आदेश दिया कि इस गोली मार दी जाये। पुलिस इस नेता को हर जगह ढूंढ रही थी पर जब तक पुलिस पहुंचे ये नेता क्रांतिकारी नेता सभाओ में भाषण दे कर चला जाये। पर आखिरकार गिरफ्तारी हो ही गयी।
हालाँकि इनको 1930 और 1940 को जेल जाना पड़ा था लेकिन इस बार जेल से लौटते वक़्त सियासत के कैनवास पर उस नेता की तस्वीर साफ दिखाई दे रही थी। जिसमे बात हो रही है आजादी के आंदोलन के समय अपनी सक्रिय भागीदारी दिखने वाले और फिर उन्होंने अपना राजनितिक करियर कांग्रेस पार्टी से शुरू किया जिनका नाम है चौधरी चरण सिंह। वह दो बार यूपी के सीएम और केवल 117 दिन के लिए प्रधानमंत्री रहे । और अब उनकी तीसरी पीढ़ी अपने बाप दादा की राजनितिक सियासत संभालने की कोशिश कर रहे हैं जिनका नाम है जयंत चौधरी।

चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस को छोड़ एक नयी पार्टी बनाई थी जिसका नाम था क्रांति दल , और जो उनके पोते आज के समय में पार्टी चला रहे हैं उसका नाम है राष्ट्रिय लोक दल । उस समय चुनाव चिन्ह किसान और हल हुआ करता था जबकि रालोद का चिन्ह हैंडपंप है । उस समय चौधरी साहब का इतना प्रवाभ था कि 150 सीटें उनके नाम होती थी मगर अब समय के हिसाब से कम होगया है।
चौधरी चरण सिंह की राजनीती
आपको बतातें हैं कि किस तरह से चौधरी चरण सिंह ने राजनितिक करियर की शुरुआत की , कौन सी पार्टी संग उन्होंने हाथ मिलाया ? कहाँ विलय किया ?

तो चलिए शुरू करते हैं चौधरी चरण सिंह का राजनितिक करियर शुरू हुआ कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन करने के साथ 1929 में , फिर इसके बाद यह उत्तर प्रदेश के छपरौली के विधानसभा के लिए चुने गए। और इसके उपरांत सन 1946, 1952, 1962 और 1967 में भी विधानसभा के लिए वह चुने गए, और इसी बेच 1951 में वह कैबिनेट मिनिस्टर भी चुने गए। सन 1966 तक उनके पास कोई न कोई मंत्रालय बना रहा।


लोकदल की स्थापना

परन्तु उन्होंने 1 अप्रेल 1967 को चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी को छोड़ भारतीय क्रांति दल के नाम से एक पार्टी बना ली। साथ में उनके कांग्रेस के सोलह विधायक भी आये , और फिर उन्होंने इसी साल यूपी में गैर कांग्रेसी सरकार बनाई। इसके साथ उन्होंने 1967 को सीएम पद की शपथ ली। लेकिन इनकी सरकार 117 दिन ही चल पाई। कांग्रेस को गिराने के बाद वह अपने पार्टी के नेताओ को संभाल नहीं पाए।
देश में पहली बार गर कांग्रेसियो ने एक साथ मिलकर जनता पार्टी की सरकार बनाई , इसमें पार्टी का चुनाव चिन्ह हलधर किसान था , वही जो भारतीय क्रांति दल का भी था , उस समय मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री रहे और चौधरी चरण सिंह उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे। मोरार जी और चरण सिंह के बीच मतभेद होगये और फिर मोरार जी की सरकार गिर गयी।

लोकदल का गठन और चरण सिंह जी बने प्रधानमंत्री
जनता पार्टी से अलग होने के बाद इन्होने अलग सरकार बनाई जिस का नाम रखा लोकदल और इसका चिन्ह था हल जोतता हुआ किसान। जुलाई 28 , 1979 को कांग्रेस और दसरे दलों की सहयोग से वह देश के पांचवे प्रधानमंत्री नियुक्त हुए। लीक उनको बहुमत साबित करने का समय बीस अगस्त तक का मिला। ये सरकार भी गिर गयी , इन्होने एक दिन भी संसद का सामना नहीं किया और इस्तीफ़ा दे दिया।

कांग्रेस का संग
नब्बे के दशक में अजीत सिंह कांग्रेस के मेंबर बन गए , जहाँ पी वी नरसिंघ राव की सरकार में 1995 -96 तक अजीत खाद्य मंत्री रहे , साल 1996 में कांग्रेस की टिकट जीतने पर लोकसभा सदस्य बने मगर एक साल के अंदर उन्होंने लोकसभा और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया

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